एक प्याली गम वाली

                                                         

 

मुद्दतों पहले एक कहानी लिखी थी मैंने एक चाय सी इश्क की, उसके गहरे रंग से रिश्तें की। लेकिन देखों आज एक अच्छी चाय पिए ज़माना गुजर गया और तुमसे बात किए हुए भी। बात करती भी तो कैसे, तुम बिना बताए जो चले गए थे उस सुबह। हाँ, मालूम है मुझे कोशिश की थी तुमने, लेकिन मेरी किस्मत मे नहीं था तुम्हें आखिरी बार सुनना।
अब इतना आसान भी नहीं है तुमसे बातें करना, ना जानें कितनी यादें उभर जाती है और बस दर्द से ही मेेरी मुलाकात हो पाती है। बड़ा मुश्किल हो जाता है कभी तो खुद को संभाल पाना, लेकिन उस वक्त को मुझे बह जाना ही अच्छा लगता है। समंदर से दोस्ती की है तो डूबने से क्या शिकवा, लेकिन फडफडाना मेरे मिजाज़ में नहीं है, मैं तय कर लूंगी साहिल तक का सफर जब मन होगा मेरा, तब तक यूं ही डूबे रहने दो मुझे इस गम के समंदर मे।
आज फिर कोशिश की थी मैंने चाय बनाने की जिसमें ना रंग आ सका और ना पहले सी खुशबू और स्वाद की तो तुम पूछना भी मत। लेकिन फिर भी मैं पी रही हूंँ इस जहर सी चाय को, इस गम की प्याली को। क्या तुम्हें पता है कि तुम एक ठंडी हवा के झोंके की तरह थे, जिसने ना अपनी आने की आहट दी थी, ना जाने का पता और सब तहस नहस कर दिया, और बिखेर दिया मुझे कभी ना जुड़ सकने वाले टुकड़ों में।
समझ नहीं पाती हूं मैं कभी खुद को और अपने हालातों को, और ना उस बेस्वाद सी चाय के प्याले को, जो किसी समय तक मेरे हर दर्द की दवा हुआ करती थी, कभी बेे मतलब सी जिंदगी मे सुकून भरे अहसास की कमी पूरी किया करती थी।
समेटती रहूंगी मैं खुद को जैसे कच्ची जमीन समेट लेती है छलकती हुई चाय को। दाग रह जाएंगें कभी तो आंखें कर देगी पानी की कमी पूरी और साफ हो जाएगी हर बूंद गम की। नहीं पता चलेगा किसी को क्या हुआ बंद दरवाजों मेें, मैं निकलूंगी बाहर फिर से वो मुस्कान लिए जिसे देखकर तुम भी अपनी नाराज़गी भूल जाया करते थे, और मेरी आंखों में डूब जाया करते थे। उन्हीं आंखों में मैं तुमको हमेशा संवारती रहूंगी, ‘एक प्याली गम वाली‘ मैं हमेशा संभालकर रखूंगी।    



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