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प्यार नहीं तुमसे।

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एक रोज उसने मुझसे पूछा कि प्यार करते हो ना हमसे। सवाल तो नही था ये, पर हां, तसल्ली के लिए अक्सर पूछ ही लेते है या फिर समय-समय पर मुझे याद दिलाने के लिए, कि प्रिये, ‘हम है।‘ अब पूछा है तुमने, तो सुनो- प्यार नहीं मोहब्बत है तुमसे, ठीक उसी तरह जैसे मेरी चाय। चाय, सर्दी की जरुरत नहीं, हर मौसम की आदत है। ठीक उसी तरह हो तुम, खाली समय की याद नहीं, हर वक्त का ख्याल हो। किसी मर्ज़ की दवा नही, हर पल का सुकून हो। जिस तरह चाय की एक घूंट हर रग मे रुसार हो जाती है, ठीक उसी तरह हो तुम, जिसके कंठ से निकला हर स्वर मेरी रुह छू जाता है और सारी उलझने पीछे छोड़कर मन को सुकून सा आ जाता है।  उतना ही गहरा रिश्ता है तुमसे, जितना गहरा रंग मेरी चाय का। जिसको तब तक पकाया जाता है जब तक उसकी खुशबू आंगन ना महका दे। जिसकी महक तलक से ही पीने वाले को स्वाद का पता चल जाता है, वैसे ही तुम्हारा एहसास तुम्हें हमेशा मेरे पास रखता है।  शायद तुम्हे चाय पसंद नही या फिर तुमने कभी कडक और अच्छी चाय पी ही नही या फिर कभी हमसें मोहब्बत की ही नहीं। तुम्हारा और मेरा मिजाज़ उतना ही कडक है जितनी कडक मुझे चाय पसंद है। जिसमें चायपत्...